शाल्मली वृक्ष के औषधीय गुण और आयुर्वेदिक उपयोग
यह प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग किया जाने वाला एक प्रकृतिक वृक्ष है, जो अपने लाभकारी औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। यह एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जो मैदानी भागों में पाया जाता है। भारतीय शाल्मली का वृक्ष, सेमल, सिमाल, किन्नर सलामलिया मालाबारिका आदि नामों से जाना जाता हैं। भारतीय हिन्दू परंपरा में यह वृक्ष पांच पवित्र वृक्षों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में इस वृक्ष का उपयोग इसके लाभकारी औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। इस प्राकृतिक वृक्ष के अंदर काम शक्ति को बढ़ाने वाले, पेचिश, पाचन विकारों को दूर करने वाले और ज्वरनाशक गुण पाए जाते हैं। प्रकृति ने इस वृक्ष के हर भाग को औषधीय गुणों से संपन्न किया है। इस वृक्ष के विभिन्न भागों का उपयोग बुखार, चेचक, कुष्ठ रोग और गठिया के इलाज के लिए किया जाता है। इस वृक्ष की जड़ें कामोद्दीपक समस्याओं और नपुंसकता को ठीक करने के लिए आयुर्वेद में उपयोग की जाती हैं। इस वृक्ष का फल आयुर्वेदिक चिकित्सा में मूत्रवर्धक, सूजन को दूर करने वाला और गुर्दे की पथरी के लिए उपयोग किया जाता है। पुरुषों में इस लाभकारी जड़ी-बूटी का उपयोग दोपहर उत्सर्जन और वीर्य से संबंधित विभिन्न विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
शाल्मली वृक्ष का परिचय
यह एक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला लाभकारी वृक्ष है। इस वृक्ष की ऊंचाई 125 फ़ीट तक हो जाती है। आयुर्वेद में यह वृक्ष अपने खूबसूरत फूलों और ऊँचे आकार के कारण जंगल के राजा के रूप में भी जाना जाता है। यह एक पर्णपाती वृक्ष होता है। इस वृक्ष के फूल लगभग 6-7 इंच लंबे और 7 इंच चौड़े हों सकते हैं। इस वृक्ष के फूल लाल और सफेद रंग की पंखुड़ियों वाले होते हैं। इस वृक्ष के फूल जनवरी से मार्च तक आ जाते हैं। इस वृक्ष के फल मार्च और अप्रैल में अच्छे से पक्क जाते हैं, इस वृक्ष के अपरिपक्व फल हल्के हरे रंग के होते हैं और पकने के बाद गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं।
इस वृक्ष के अन्य भाषाओं में नाम
- लैटिन – सलमलिया मलबारिका
- संस्कृत – कंटकाढ्य, पिछिल, मोचा , स्थिरायु ,पूरणी, रक्तपुष्पा
- हिंदी – शाल्मली , सेमल
- बंगाली – सेमुल
- असामी – सिमोलू
- गुजराती – शिमालो
- तेलुगु – बुरुगा
- तमिल – सित्तान, लवम , फलाई
- कन्नड़ – बुरुगा
- मराठी – सफेटासरवा, सांवर
- उर्दू – सुम्बल
- मलयालम – उन्नमुरि
- कानपुरी – तेरा
- ग्रीक – वोमवास मालवारिकोस
शरीर के अंदर त्रिदोषों पर शाल्मली के प्रभाव
आयुर्वेद के अनुसार यह वृक्ष शरीर के अंदर तीनों दोषों को संतुलित रखने में मदद करता है परन्तु मुख्य रूप से यह वात और पित्त दोष को संतुलित करने में सहायक साबित होता है।
यह औषधीय पौधा कटु, कषाय रस युक्त, वात और पित्तनाशक, भूख को बढ़ाने वाला, पाचन विकारों को दूर करने वाला, शरीर की मांसपेशियों को मजबूत रखने वाला और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत करने वाला होता है।
व्याख्या :–इस श्लोक में कहा गया है कि शाल्मली, मोचा, पिचिला, पुराणी, रक्त्पुष्पा, शिरायु, कंटकाद्या और तुलिनी, सालमलिया के विभिन्न नाम हैं। यह जड़ी-बूटी शीतल प्रकृति वाली और पाचन के बाद मीठा स्वाद होता है। आयुर्वेद में इसका उपयोग रसायन के रूप में किया जाता है और इसका उपयोग वात और पित्त दोष को शांत करने में किया जाता है। इस जड़ी-बूटी का उपयोग बवासीर और रक्तस्राव विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
सन्दर्भ :–भावप्रकाश निघण्टु, (वटादिवर्ग), श्लोक -54 -55 ।
शाल्मली के औषधीय गुण
- रस – मधुर, कषाय
- गुण – लघु, स्निग्ध, पिच्छिल
- वीर्य – शीत
- विपाक – मधुर,कटु
शाल्मली वृक्ष के आयुर्वेदिक गुण
1. दस्त में लाभकारी
अगर कोई व्यक्ति दस्त की समस्या से ग्रसित है तो उसको शाल्मली की छाल के साथ मुलेठी का मिश्रण करके सुबह खाली पेट आधा गिलास काढ़े का सेवन का करना चाहिए। यह प्रयोग दस्त की समस्या को बहुत जल्दी दूर करने में मदद करता है।
2. बवासीर में फायदेमंद
आयुर्वेद के अनुसार बवासीर से ग्रसित व्यक्ति को शाल्मली के पुष्पों का उपयोग करना लाभकारी होता है, इसके लिए शाल्मली के 4 से 5 पुष्पों को देसी गाय के एक गिलास दूध में उबालकर उसके अंदर 1 चम्मच शक़्कर डालकर रोजाना सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ प्राप्त होता है।
3. यौन शक्ति को बढ़ाने में सहायक
आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार यह वृक्ष यौन कमजोरी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए रामबाण औषधि साबित होता है। इसके उपयोग के लिए शाल्मली की छाल का एक चम्मच चूर्ण और उसके अंदर एक चम्मच शंखपुष्पी की छाल का चूर्ण मिश्रण करके 1 गिलास देसी गाय के गर्म दूध में रात को सोने से पहले रोजाना सेवन करना चाहिए। यह प्रयोग व्यक्ति की यौन शक्ति को बहुत तेजी से बढ़ाता है| इस प्रयोग का नियमित सेवन वित्य की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक साबित होता है।
शाल्मली वृक्ष के अन्य आयुर्वेदिक गुण
- इस वृक्ष की जड़ दस्त के इलाज के लिए उपयोग की जाती हैं, यह शरीर के घावों के इलाज के लिए भी उपयोगी साबित होती है।
- इस वृक्ष का गोंद जलन को कम करने, पाचन रोगों को दूर करने, तपेदिक त्वचा रोगों को दूर करने और आंत की बिमारियों के इलाज के लिए भी लाभकारी माना गया है।
- इस वृक्ष की छाल का उपयोग रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जाता है।
- इस वृक्ष के कषैले स्वाद वाले फूलों का उपयोग बवासीर के उपचार में किया जाता है, और विभिन्न प्रकार की त्वचा की परेशानियों के लिए भी अच्छा होता है। इस वृक्ष के बीजों का लेप त्वचा को प्रकृतिक सौंदर्य प्रदान करने में मदद करता है।
- आयुर्वेद के अनुसार पिंपल्स और मुंहासों को ठीक करने के लिए इस वृक्ष के बीजों का लेप उपयोग किया जाता है।
- आयुर्वेदिक चिकित्सा में बीज का उपयोग लिंग की समस्याओं को दूर करने और योनि रोगों जैसे ल्यूकोरिया आदि के उपचार के लिए किया जाता है।
- इस वृक्ष के पक्के हुए फल का उपयोग गुर्दे और मूत्राशय रोगों के उपचार में किया जाता है। इसका उपयोग सूजन और पथरी संबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है।
- इस वृक्ष का उपयोग वीर्य की गुणवत्ता को बढ़ाने में किया जाता है।
- इस वृक्ष के फूल रेचक की बीमारी को दूर करने और मूत्र को बढ़ाने वाले होते हैं, जिससे शरीर से हानिकारक बैक्टीरिया मूत्राशय मार्ग से बाहर निकल जाता है।
शाल्मली वृक्ष के प्रयोज्य अंग
- बीज
- छाल
- फल
- जड़
- फूल
- निर्यास
इस प्राकृतिक वृक्ष का अत्यधिक लाभ प्राप्त करने के लिए हमें किसी आयुर्वेदिक वैद्य से परामर्श जरूर करना चाहिए।
Dr. Vikram Chauhan
Latest posts by Dr. Vikram Chauhan (see all)
- Best Herbs That Kill Cancer Cells - December 12, 2023
- How to treat optic neuritis in ayurveda with herbal remedies - December 11, 2023
- Treatment of Sarcoidosis in Ayurveda with Herbal Remedies - November 20, 2023
- Vibhitaki/Baheda (Terminalia bellirica)- Benefits, Medicinal Uses, Dosage & More - November 18, 2023
- Chylous Ascites Causes Symptoms and Treatment in Ayurveda - October 4, 2023